Friday, November 13, 2009

मुक्तिबोध के साथ तीन दिन : कमलेश्वर



मुक्तिबोध को याद करूँ तो ज़्यादा यादें मेरे पास नहीं हैं पर जो हैं वे अप्रतिम और बहुत कारगर यादें हैं. कई बार ही शंकर परसाई से यह तय हुआ कि राजनादगाँव जाकर मुक्तिबोध से मिलना है.

यह प्रोग्राम कभी बन नहीं पाया क्योंकि मैं उन दिनों ‘सारिका’ में बम्बई था और दौड़ते भागते ही परसाई के पास जबलपुर पहुँच पाता था.

लेकिन इससे भी पहले, बहुत पहले मुक्तिबोध का कुछ ज़रूरी ज़िक्र श्रीकाँत वर्मा के उन दो तीन पत्रों में मौजूद था जो श्रीकाँत वर्मा ने बिलासपुर से लिखे थे, जब मैं इलाहाबाद में था. श्रीकाँत वर्मा शुरू से ही मुक्तिबोध मय थे.

यह प्रगतिशील चेतना का स्वर्णकाल था. पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे. भारत गुटनिरपेक्ष देशों का अग्रदूत था. ग़रीबी उन्मूलन के लिए पँचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत हुई थी. सार्वजनिक सेक्टर को प्राइवेट सेक्टर पर तरजीह दी गई थी.

विश्व शाँति की प्रखर पक्षधरता का वह दौर था और भारत शीतयुद्ध और परमाणु बमों की स्पर्धात्मक होड़ का घनघोर विरोधी था.

साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, पूँजीवाद और मार्क्सवादी साम्यवाद पर तब तीखी बहसें होती थीं. लोकतांत्रिक भारत की संसद में तब कम्युनिस्ट पार्टी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी.

कामरेड पीसी जोशी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल सेक्रेटरी थे. हिंदी सहित भारत की सभी भाषाओं में प्रगतिशील सोच और लेखन का आंदोलन अपने शिखर पर था. तब हिंदी के रचनात्मक साहित्य का केंद्र इलाहाबाद था.

उन्हीं दिनों 1957 में एक विराट साहित्यिक समारोह का आयोजन इलाहाबाद में हुआ था. जिसमें मुक्तिबोध तक शामिल हुए थे. यह आयोजन प्रेमचंद के छोटे बेटे अमृतराय ने किया था. जिन्हें हम अमृत भाई कहते थे.

सुभद्रा कुमारी चौहान की बेटी सुधा उनकी पत्नी और हम सबकी भाभी थीं. शिवानी प्रेमचंद तब इलाहाबाद में ही अमृतराय के पास रहती थीं और हम लोग रोज़ ही उनसे मिलते थे. अमृतराय से मुक्तिबोध की दाँतकाटी दोस्ती थी.

अमृतराय एक छोटी सी सड़क मिंटो रोड पर रहते थे, जहाँ क्नाटीनुमा एक से चार घर थे. पहला घर ओंकार शरद का था दूसरा खाली पड़ा था तीसरे में अमृत भाई और चौथे में दादा श्रीकृष्णदास रहते थे.

मार्कण्डेय उन्हीं के साथ रहते थे और यही मेरा और दुष्यंत कुमार का अड्डा था. यह नई कहानी के उदय का तूफानी दौर था. वैचारिक और रचनात्मक स्तर पर दादा श्रीकृष्णदास पत्रकारिता और लोकधर्मी रंगमंच इप्टा के बानियों में थे.

यहीं सरोजिनी भाभी, श्रीमती कृष्णदास के माध्यम से हम लोगों की ऐतिहासिक मुलाकात डॉ नामवर सिंह से हुई थी. दूसरी ऐतिहासिक मुलाकात दो साल बाद यहीं पर मुक्तिबोध से हुई थी जब वे इलाहाबाद प्रगतिशील साहित्य समारोह में आए थे और दादा श्रीकृष्णदास के घर उनसे मिलने पहुँचे थे.

दुनिया जानती है कि मुक्तिबोध वामपंथी कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रबल समर्थक थे. उन्होंने जो बातें दादा श्रीकृष्णदास और बाद में मार्कण्डेय, दुष्यंत और हमसे कीं उसके शब्द ज़रूर दूसरे हैं पर सर्वहारा की सशस्त्र क्राँतिवादी सोच के उन दिनों में मुक्तिबोध ने जो बातों बातों में कहा वह मेरे दिमाग में आज भी उत्कीर्ण है.

बीड़ी का गहरा सुट्टा लगाते हुए वे बोले थे पार्टनर रूसी या फ्राँसीसी क्राँति का आयात नहीं किया जा सकता. प्रत्येक क्राँति अपनी ज़मीनी सच्चाइयों और कारणों से जन्मेगी. तब तुम ग़ैरबराबरी मिटाकर बराबरी लाने की बात करोगे तो लोग तुम्हें समाजवादी कहेंगे लेकिन जैसे ही तुम ग़ैरबराबरी के कारणों की तलाश करना शुरू करोगे लोग तुम्हें कम्युनिस्ट कहना शुरू कर देंगे.

इसे मंजूर करना भाषा की कभी परवाह मत करना. महाजनी सभ्यता से कम ख़तरनाक और कम क्रूर नहीं है व्यवसायी शोषक सभ्यता.

दुकानदारी और कर्जदारी. तलाश करना ज़रूरी है कि सभ्यता का अड्डा तिरछा विकास क्यों हुआ है. विचारों के जनसंघर्ष के लिए जनतंत्र ज़रूरी है. सर्वहारा की तानाशाही एक मिथकीय मुहावरा है. पर इस राजनीतिक मिथक को ध्वस्त और पराजित होने से बचाना भी ज़रूरी है आदि आदि.

समारोह में तो मुक्तिबोध, शमशेर बहादुर सिंह और नरेश मेहता मिलते ही थे पर मुक्तिबोध खासतौर से शमशेर बहादुर सिंह के बहादुरगंज वाले एक कमरे के मकान में गए थे. मैं ही उन्हें लेकर गया था. वहाँ वे शमशेर भाई से उनके छोटे भाई तेज बहादुर चौधरी के बारे में बातें करते रहे थे. बीच बीच में मैं उन्हें इलाहाबाद की मशहूर लाल मोहम्मद बीड़ी सुलगा सुलगा कर देता रहा था.

आतंकवादी हेडली का 'राहुल' महेश भट्ट का बेटा निकला

आखिरकार खुफिया एजेंसियों ने पता लगा लिया है कि लश्कर-ए-तोएबा के डेविड कोलेमन हेडली द्वारा अपनी ईमेल में इस्तेमाल किया गया नाम राहुल, राहुल गांधी या शाहरुख खान नहीं, बल्कि जाने-माने फिल्म निर्माता महेश भट्ट का बेटा राहुल भट्ट है।

पता चला है कि राहुल एफबीआई द्वारा अरेस्ट किए गए हेडली का दोस्त रहा है। हालांकि खुफिया एजेंसियों ने राहुल को करीब-करीब क्लीन चिट दे दी है। हेडली के मुंबई में रहने के दौरान राहुल ने उसे यहां किराये पर फ्लैट दिलाने में भी मदद की। राहुल ने हेडली का दोस्त होने की बात स्वीकार की है, लेकिन राहुल का कहना है कि उस वक्त वह उसके बैकग्राउंड और लश्कर कनेक्शन के बारे में नहीं जानता था।

जब इस बारे में महेश भट्ट से बात की गई, तो उन्होंने इस बात से ना तो इनकार किया और ना ही स्वीकार किया कि उनके बेटे से खुफिया एजेंसियों ने पूछताछ की है। किसी भी मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिये हमेशा तैयार बड़बोले महेश भट्ट ने कहा, 'यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला है ना कि बॉलिवुड से जुड़ा। इसलिए इस बारे में आपको सुरक्षा एजेंसियों से बात करनी चाहिए। मैं इस बारे में कुछ नहीं कहूंगा।'

राहुल ने अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर रखा है।

Wednesday, November 11, 2009

क्या मांसाहार से लोग हिंसक हो जाते हैं?

महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट से कहा है कि कैदियों को भोजन में मांस परोसना संभव नहीं है क्योंकि इससे हिंसक प्रवृत्ति बढ़ेगी और हालात बेकाबू हो सकते हैं।

सरकार ने कहा है कि अदालत द्वारा सुझाए गए तीनों विकल्प डिब्बाबंद भोजन परोसना, जेलों के बाहर से भोजन का ऑर्डर देना या जेल के रसोईघर में मांसाहार तैयार करना व्यावहारिक नहीं हैं।

जस्टिस बिलाल नाजकी ने 1993 बम विस्फोट के सजायाफ्ता सरदार शाहवाली खान की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया जिसमें जेल की कैंटीन में मांसाहारी भोजन की पर प्रतिबंध का विरोध किया गया है।

सरकार ने पिछले साल जेलों में मांसाहारी भोजन पर प्रतिबंध को लेकर सर्कुलर जारी किया था जो पहले महाराष्ट्र जेल के मैन्यूअल में शामिल था। जेल के अधिकारियों ने भी कैदियों को मांसाहारी भोजन देना बंद कर दिया था। इससे नाराज 1993 बम विस्फोट के सजायाफ्ता सरदार शाहवाली खान ने सर्कुलर को चुनौती दे दी।

पूरी खबर यहां थी

Tuesday, November 10, 2009

अब जनसत्ता भी प्रगति की राह में,

खुशियां, आज के जनसत्ता का मुखपृष्ठ इसके खुशहाली की राह पर चल पड़ने का संकेत दे रहा है।

Monday, November 9, 2009

मस्जिद के सामने मुसलमानों ने गाया राष्ट्रगीत

देवबंद के फतवे को धता बताते हुए बैतूल बाजार की जामा मस्जिद के इमाम हाफिज अब्दुल राजिक की अगुआई में मुसलमान समुदाय के एक समूह ने मस्जिद के सामने राष्ट्रगीत गाया। बैतूल बाजार की जामा मस्जिद के इमाम हाफिज अब्दुल राजिक के न्यौते पर इस सामूहिक गान को देखने के लिए मस्जिद के सामने विभिन्न संप्रदाय के कई लोग जमा हुए।

इस समारोह का आयोजन रुक्मणि बालाजी मंदिर की ओर से किया गया। पहले एक मंदिर के सामने राष्ट्रगीत गाकर भारत माता नाम से रैली निकाली गई। जब यह रैली मस्जिद के सामने पहुंची तो इमाम ने लोगों से वंदेमातरम गानी की अपील की। इसमें अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने हिस्सा लिया।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वंदेमातरम न गाने के लिए जारी किए गए फतवे को ही आड़े हाथ लिया है। बोर्ड के सदस्य मौलाना हमीदुल हसन ने कहा कि अगर मुसलमान राष्ट्रगीत वंदेमातरम गाते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है।