महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट से कहा है कि कैदियों को भोजन में मांस परोसना संभव नहीं है क्योंकि इससे हिंसक प्रवृत्ति बढ़ेगी और हालात बेकाबू हो सकते हैं।
सरकार ने कहा है कि अदालत द्वारा सुझाए गए तीनों विकल्प डिब्बाबंद भोजन परोसना, जेलों के बाहर से भोजन का ऑर्डर देना या जेल के रसोईघर में मांसाहार तैयार करना व्यावहारिक नहीं हैं।
जस्टिस बिलाल नाजकी ने 1993 बम विस्फोट के सजायाफ्ता सरदार शाहवाली खान की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया जिसमें जेल की कैंटीन में मांसाहारी भोजन की पर प्रतिबंध का विरोध किया गया है।
सरकार ने पिछले साल जेलों में मांसाहारी भोजन पर प्रतिबंध को लेकर सर्कुलर जारी किया था जो पहले महाराष्ट्र जेल के मैन्यूअल में शामिल था। जेल के अधिकारियों ने भी कैदियों को मांसाहारी भोजन देना बंद कर दिया था। इससे नाराज 1993 बम विस्फोट के सजायाफ्ता सरदार शाहवाली खान ने सर्कुलर को चुनौती दे दी।
पूरी खबर यहां थी
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4 comments:
फिलहाल अभी तक मैं तो नहीं हुआ।
बेशक! हिंसा हिंसा को बढायेगी ही
नई विचारोत्तेजक बात।
मांसाहार हिंसा के लिए उकसाता है या नहीं यह शोध का विषय हो सकता है परन्तु भारत जैसे देश में जहाँ शाकाहारी भोजन सस्ता, सुलभ और बहुतायत में हैं वहां जेलों में मांसाहार परोसना, जो कि मंहगा पड़ता है, सही नहीं है. आखिर इन समाजविरोधी लोगों को समाज के पैसे (टैक्स) पर ऐयाशी की इजाजत क्यों दी जाये??
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