Wednesday, October 28, 2009

क्या अजित वडनेरकर भारत के सबसे पहले ऑनलाईन पत्रकार हैं?

आज प्रात:काल अ-ब्लागर अजित बडनेरकर की ओजस्वी चिठ्ठापोस्ट पढ़ी जिसे ब्लागर के एडिट आप्शन में जाकर लिखा गया था। कमाल की वक्तता थी। इसमें निम्न जानकारियां प्राप्त हुई

: अजित वडनेरकर 89 से ऑनलाईन पत्रकार-कर्म कर रहे हैं। आदि चिठ्ठाकार कौन है इस पर तो लगभग सहमति है। आदि आनलाइन पत्रकर कौन है, आज इस पर अजित वडनेरकर ने अपना दावा ठोक दिया है?


: चिठ्ठाकारों में उत्सुकता थी की ब्लागर को निमंत्रित करने का क्या पैमाना था, रहस्य पता चला कि इसके लिये सकारात्मक सोच होना आवश्यक था।


जो नकारात्मक सोच रखते हैं वह व्यर्थ में क्यों कुलबुला रहे हैं?

8 comments:

Anonymous said...

वडनेरकर जी को इस उपलब्धी पर बधाई आप तो पितामा के भी मामा निकले

निर्मला कपिला said...

सही बात है जी धन्यवाद्

अविनाश वाचस्पति said...

पोस्‍ट के शीर्षक में से क्‍या हटायेंगे तो अच्‍छा लगेगा। पक्‍का हो जाएगा।

Anonymous said...

89 से आनलाइन पत्रकारिता कर्म!
बहुत ज्यादा ऊँची छोड़ दी है :)

Anonymous said...

जब रणदुदुंभी बज रही हो, सेनायें आपने सामने हों, भुजायें फड़क रहीं हो एसे समय में अपने शौर्य का स्मरण करना ही उचित होता है।

वीरबालक ने अपने शौर्य सूचक शब्दों को 'एक अ-ब्लागर जो 1983 से पत्रकारिता कर रहा है और 1989 से ऑनलाईन पत्रकार-कर्म करने का आदी रहा है'" में परिवर्तित कर दिया है|

1989 से ऑनलाईन पत्रकार-कर्म... हे प्रभु, ये तो भारत के ही नहीं, विश्व के पहले ऑनलाईन पत्रकार हुये

ओ Meredith Artley, क्या तुम सुन रही हो? देखो तुम्हारे सिर्फ से विश्व की पहली ऑनलाईन पत्रकार होने का क्राउन नुचा जा रहा है !

Anonymous said...

मान गये वडनेरकर जी को, ये तो पहले से भी पहले से भी पहले निकले... ये पन्ना देखिये

http://www.internetworldstats.com/asia/in.htm

1998 में इन्टरनेट के भारत में कुल प्रयोक्ता 1 लाख 40 हजार थे. लेकिन वडनेरकर जी तो 1989 से नेट पत्रकार हैं!

यकीनन यह भारत के पहले नेट प्रयोक्ता भी हैं. इन्हें कोई सम्मान-वम्मान दिलवाओ भाई!

नामवर सिंह को चीफ गैस्ट किसने बनाया? वडनेरकर जी को बनाना चाहिये चीफेस्ट गेस्ट!

ओये कहां गये ओर्गानाइज़र?

छोड़ो! छोड़ो! यह ब्लागिंग है प्यार कौन पकड़ रहा है

जिन लोगों को नामवर के चिट्ठा हाइजैक करने से खुजली मची उन्हें इसको पढ़के कित्ती ठंडक पहुंची होगी!

हाय, हमारे प्रेट्टी ब्वाय ने कित्ता बड़ा तीर मारा है

Anonymous said...

हड़बड़ी में कुछ भी लिख दिया होगा
वैसे 1989 में तो भारत में इन्टरनेट भी नहीं आया था

अजित वडनेरकर said...

आज यहां पहुंचा। टाइपिंग की गलती है। उस पर इतनी चर्चा हो गई। हमारे संस्थान में 1989-90 में कम्प्यूटर लग गए थे। मॉडेम के जरिये खबरे एक जगह से दूसरी जगह जाती थीं। आपको इतना ताज्जुब क्यों हो रहा है इस बात पर।

मैने तो ऐसा दावा नहीं किया जैसा शीर्षक दिया है। मेरे साथ के कई लोग और उस ज़माने के कई संस्थानों में कम्यूटर और मॉडेम लग चुके थे और ऑनलाईन जर्नलिज्म शब्द उसी समय प्रचलन में आना शुरू हुआ था।

आप लोग संभवतः वेबसाईट, इंटरनेट के संदर्भ में मेरी बात को तौल रहे हैं तो गलती आपकी है:)